बच्चों की परवरिश में सबसे बड़ी चीज़ है सही जानकारी रखना। चाहे आप पहले बच्चे के पिता-माता हों या दादा-दादी, छोटे‑छोटे बदलाव बड़े असर डालते हैं। इस लेख में हम रोज़मर्रा की छोटी‑छोटी बातों को समझेंगे, जिससे आपके बच्चों का स्वास्थ्य और मनोविकास दोनों बढ़िया रहेगा।
बच्चों को पौष्टिक भोजन देना सिर्फ उनकी हड्डी‑मांसपेशियों के लिए नहीं, बल्कि दिमाग की तेज़ी के लिए भी जरूरी है। हर दिन अंडा, दाल, रोटी और हरी सब्ज़ी का एक छोटा हिस्सा जोड़ें। यदि बच्चा सब्ज़ी नहीं खाता, तो इसे बारी‑बारी से प्यूरी, सूप या रंग‑बिरंगे सलाद के रूप में पेश करें। ऐसे छोटे‑छोटे ट्रिक्स से खाने में रुचि बढ़ती है और पोषण सही मिलता है।
बच्चों को रोज़ कम से कम एक घंटा बाहर खेलना चाहिए। गली में गेंद‑फुटबॉल, घर में ब्लॉक्स या पहेलियाँ, सभी दिमाग़ को तेज़ बनाते हैं। साथ‑साथ शारीरिक शक्ति भी बढ़ती है। अगर बारिश है तो इंटीरियर में संगीत, नाच या आसान योग को आज़माएँ। ये एक्टिविटी छोटे‑बच्चों को तनाव‑मुक्त रखती हैं और फोकस बेहतर बनाता है।
नींद भी विकास का अहम हिस्सा है। दो‑साल के बच्चे को रोज़ 12‑14 घंटे की नींद चाहिए, जबकि 5‑से‑10 साल के बच्चों को 10‑11 घंटे पर्याप्त होते हैं। सोने से पहले स्क्रीन टाइम घटाएँ, एक हल्का बाठ या कहानी सुनाएँ। शांत माहौल में बच्चे जल्दी सोते हैं और अगले दिन ऊर्जावान उठते हैं।
बच्चों की शिक्षा में पढ़ाई के साथ‑साथ रचनात्मकता को भी जगह दें। चित्रकला, संगीत वाद्य बजाना या कहानी लिखना उनकी अभिव्यक्ति क्षमता को निखारता है। जब बच्चा कुछ नया सीखता है, तो उसकी प्रशंसा करें, इससे आत्म‑विश्वास बढ़ता है। छोटे‑छोटे प्रोजेक्ट, जैसे बगीचे में पौधे लगाना, उन्हें जिम्मेदारी भी सिखाते हैं।
सुरक्षा की बात न भूलें। घर में तेज़ सामान, हल्की सीढ़ी या रसायन को बच्चों की पहुँच से दूर रखें। सबसे ज़रूरी है बच्चों को सरल भाषा में खतरे की पहचान सिखाएँ, जैसे जलना, गिरना या अजनबे लोगों से दूरी बनाये रखना।
यदि आपका बच्चा कभी डर या चिंता दिखाता है, तो उसकी बात सुनें। कंधे पर हाथ रखें, सवाल पूछें और समझाएँ कि सभी को कभी‑कभी डर लगता है। पेशेवर मदद की जरूरत पड़े तो बाल मनोवैज्ञानिक से संपर्क करें, यह अक्सर बड़ी समस्या को छोटा कर देता है।
अंत में, खुद को भी बहुत ज़्यादा दबाव में न रखें। बच्चों की परवरिश में ups‑and‑downs आते‑जाते रहते हैं। छोटे‑छोटे सफलताओं को जश्न मानें, और हर दिन को सीखने का मौका बनाएं। इस तरह आप और आपका बच्चा दोनों ही खुश रहेंगे और आगे बढ़ेंगे।
प्राचीन युग में भारतीय बच्चों की जिंदगी अत्यंत सुंदर और समृद्ध थी। वे नौकरी के लिए अपनी उम्र को हरेक काम के लिए उपयोग करते थे। प्राचीन युग में बच्चों को ज्ञान और सीखने के लिए अत्यंत समर्पित था। वे प्राचीन व्यापारी व्यवस्था से अधिकतर समय में अपने परिवार की नींव को सहेजने के लिए जुट जाते थे। प्राचीन युग में बच्चों के लिए व्यवसाय और आर्थिक सुधार की सुविधा उपलब्ध थी। वे अपने जीवन में अत्यंत कठिन परिश्रम और प्रतिस्पर्धा को सामना करते थे।
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